इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने हाल ही में एक आधिकारिक प्रकाशन में यह स्वीकार किया है कि डिजिटलीकरण के चलते अब ऐसे नए फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स और डिजिटल एसेट्स सामने आ चुके हैं जिन्हें पेमेंट और वैल्यू स्टोरेज के लिए डिज़ाइन किया गया है।
अब तक क्रिप्टोकरेंसीज़ को मुख्यतः एक सट्टा आधारित एसेट के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन जब IMF जैसा वैश्विक संस्थान इन डिजिटल एसेट्स को खुले तौर पर “मूल्य संरक्षित करने वाले माध्यम” यानी store of value के रूप में पहचानता है — तो यह संकेत है कि अब इन्हें पारंपरिक मुद्राओं के बराबर की मान्यता मिलने लगी है।
हाल के महीनों में हमने देखा है कि इनका वास्तविक दुनिया में इस्तेमाल बढ़ा है — जैसे अमेरिका में टोकनाइज़्ड रियल-वर्ल्ड एसेट्स (RWAs) का लोकप्रिय होना, या फिर जापान में रियल एस्टेट कंपनियों द्वारा XRP, SOL, और DOGE को प्रॉपर्टी की खरीद में स्वीकार करना। ऐसे समय में IMF की यह मान्यता यह दर्शाती है कि क्रिप्टो अब एक प्रयोगात्मक तकनीक नहीं रहा, बल्कि असली अर्थव्यवस्था में उपयोग होने वाला एक व्यवहारिक टूल बनता जा रहा है।
बेशक, IMF अभी भी इस बदलाव को “सुरक्षित डिजिटलीकरण” के फ्रेम में देख रहा है — और शायद इसकी प्राथमिकता CBDCs (Central Bank Digital Currencies) ही है। लेकिन फिर भी, ये बात कि उन्होंने store-of-value की भूमिका को विशेष रूप से उजागर किया है — बहुत कुछ कहती है।
शायद अब बात सिर्फ क्रिप्टो को एक निवेश साधन मानने की नहीं रह गई है।
शायद हम उस दौर की शुरुआत देख रहे हैं जहाँ “पैसे” की परिभाषा ही बदल रही है।